बस्तर : 13 अक्टूबर 2024 ( स्वतंत्र छत्तीसगढ़ )
बस्तर दशहरा में आज (रविवार को) 8 चक्कों वाले विजय रथ की चोरी होगी। किलेपाल के ग्रामीण रथ खीचेंगे। रथ की परिक्रमा के बाद उसकी चोरी कर ली जाएगी। इसे बस्तर दशहरा की रैनी रस्म कहते हैं। परंपरा के अनुसार, ग्रामीण इसे निभाते आ रहे हैं।
इससे पहले शनिवार को महत्वपूर्ण रस्मों में से एक मावली परघाव शनिवार देर रात पूरी की गई। माता दंतेश्वरी का छत्र और माता मावली की डोली का राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव समेत हजारों भक्तों ने स्वागत किया। माता के स्वागत के लिए सड़कों पर फूल बिछाए गए और आतिशबाजी की गई।
विदाई तक राज महल में रहेंगी माता दंतेश्वरी
मावली परघाव रस्म को लेकर बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, बस्तर में अब तक जितने भी राजा थे सभी इस रस्म की अदायगी के समय कांटाबंद (राजा के सिर में फूलों का ताज) पहनकर ही माता की आराधना करने आते थे।
वे भी इसी परंपरा को निभा रहे हैं। यह कांटाबंद का फूल बस्तर के जंगल में मिलता है। इसे पहनकर मां दंतेश्वरी और मां मावली के छत्र और डोली को प्रणाम कर कंधे पर उठाकर राज महल लेकर आए। माता बस्तर दशहरा में शामिल होंगी।
उन्होंने बताया कि, जब तक माता की विदाई नहीं होती, तब तक वे राज महल प्रांगण में ही रहेंगी। उन्होंने कहा कि, माता हमारी इष्ट देवी हैं। बस्तर दशहरा में शामिल होने सदियों से आ रहीं हैं।
दर्शन करने उमड़ी भीड़
मावली परघाव की रस्म देखने और माता के दर्शन करने सड़कों पर जबरदस्त भीड़ थी। सड़क किनारे स्थित घरों में छत के ऊपर भी भारी संख्या में लोग मौजूद रहे। माता की डोली और छत्र पर फूल बरसाए गए। जगदलपुर में राज परिवार के सदस्य, IG, कलेक्टर , SP सहित दंतेवाड़ा कलेक्टर और SP भी डोली और छत्र के साथ पहुंचे थे।
पंचमी के दिन दिया था निमंत्रण
दरअसल, सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव इस बार भी शारदीय नवरात्र के पंचमी के दिन दंतेवाड़ा पहुंचे थे। उन्होंने आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को मंगल पत्रक भेंट कर बस्तर दशहरा में शामिल होने निमंत्रण दिया था। जिसके बाद अष्टमी/नवमी के दिन माता की डोली और छत्र को जगदलपुर के लिए रवाना किया गया था।
अष्टमी/नवमी की देर रात छत्र और डोली जगदलपुर पहुंचीं। जिसके बाद दशमी की रात परंपरा के अनुसार बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव माता का स्वागत करने के लिए पहुंचे। हालांकि यह परंपरा नवमी को निभाई जाती है, लेकिन तिथि के अनुसार अष्टमी/नवमी एक साथ होने की वजह से दशमी को मावली परघाव की रस्म हुई।
जोगी उठाई रस्म भी पूरी
जगदलपुर के सिरहासार भवन में जोगी उठाई की रस्म भी पूरी की गई। जोगी 9 दिनों से उपवास रहकर एक कुंड में बैठ माता की आराधना और तपस्या किए। जोगी को उठाकर माता के स्वागत के लिए लाया गया। बस्तर दशहरा में यह रस्म बेहद महत्वपूर्ण होती है। नवरात्र के पहले दिन ही जोगी तपस्या करने के लिए बैठते हैं, ताकि बिना किसी बाधा के दशहरा संपन्न हो जाए।
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