ओड़िसा ट्रेन हादसा : मरा समझ कर लाशों के साथ मुर्दाघर में रख दिया, पिता ने देखा बेटे का हिलता हुआ हाथ तो बची जान…

कोलकता : 05 जून 2023

ओडिशा रेल हादसे में ऐसी ही तमाम कहानियां सामने आ रही हैं। हादसे में जहां मौतों का आंकडा 300 के आसपास पहुंच गया है, वहीं कई लोग मौत के मुंह से निकलकर आए हैं।

कोलकाता: ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इसकी चपेट में आकर 275 लोगों ने अपनी जान गवां दी है। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्‍हें ईश्‍वर ने दूसरी जिंदगी तोहफे में दी और अपनों से भी मिलाया। इनमें 24 साल का बिश्वजीत मलिक भी शामिल है जो मुर्दाघर तक जाने के बाद भी पिता की जिद की वजह से जिंदा बच गया है। इससे यह कहावत जाको राखे साइयां मार सके ना कोई एक बार फिर से सच साबित होते दिखाई पड़ती है।

हावड़ा के एक दुकानदार हेलाराम अपने बेटे बिश्वजीत को कुछ घंटे पहले ही शालीमार स्टेशन पर छोड़कर आए थे। बिस्वजीत को छोड़ने के कुछ घंटे बाद उन्हें रेल दुर्घटना के बारे में पता चला। हादसे की सूचना मिलते ही उन्होंने बिश्वजीत को फोन किया। बिश्वजीत ने फोन तो उठाया लेकिन ज्यादा चोटिल होने की वजह से वो ज्यादा कुछ बता नहीं पाया। हेलाराम को अंदाजा हो गया उसके बेटा गंभीर रूप से घायल है। उसने तुरंत स्थानीय एम्बुलेंस चालक पलाश पंडित को फोन किया। इसके बाद उन्होंने अपने बहनोई दीपक दास को साथ चलने के लिए कहा और उसी रात बालासोर के लिए एंबुलेंस में रवाना हो गए। उन्होंने उस रात 230 किमी से अधिक की यात्रा की लेकिन उन्हें किसी भी अस्पताल में बिश्वजीत नहीं मिला।

पिता ने नहीं मानी हार:
दास ने बताया कि हमने फिर भी हार नहीं मानी। हमें उम्मीद थी हमारा बेटा जिंदा है और हम उसकी तलाश करते रहे। एक व्यक्ति ने हमसे कहा कि अगर हमें अस्पताल में कोई नहीं मिला, तो हमें बहानागा हाई स्कूल जाना चाहिए, जहां शव रखे गए थे। उन्होंने बताया कि पहले हमें शवों को देखने की अनुमति नहीं थी। थोड़ी देर बाद, जब किसी ने देखा कि किसी पीड़ित का दाहिना हाथ कांप रहा है। हमने देखा कि यह हाथ बिस्वजीत का था, जो बुरी तरह से घायल था। हम तुरंत उसे एम्बुलेंस में बालासोर अस्पताल ले गए, जहाँ उसे कुछ इंजेक्शन दिए गए। उसकी हालत को देखते हुए, उन्होंने उसे कटक मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया, लेकिन हमने बांड पर हस्ताक्षर किए और उसे छुट्टी दे दी।