रायपुर। 02 फरवरी 2023
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और सुकमा जिले के तत्कालीन कलेक्टर रहे एलेक्स पॉल मेनन ने उन नक्सलियों को पहचानने से इंकार कर दिया जिन्होंने 21 अप्रैल 2012 में उनका अपहरण कर लिया था। उन्होंने कोर्ट के सामने यह भी बताय की भविष्य में भी वह उन नक्सलियों को नहीं पहचान पाएंगे। गौरतलब हैं की एलेक्स पॉल करीब 12 दिन नक्सलियों के चंगुल में थे जबकि 13वें दिन नक्सलियों के साथ हुई मध्यस्थता और चर्चा के बाद उन्हें सकुशल रिहा कर दिया गया था। कलेक्टर की रिहाई से प्रशासन समेत समूचे छग सरकार ने राहत की सांस ली थी। इसी मामले में चल रहे सुनवाई में तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन एनआइए के विशेष न्यायाधीश दीपक कुमार देशलहरे के समक्ष बयान दर्ज कराने पहुंचे थे । अपने बयान में उन्होंने कहा हैं की 21 अप्रैल 2012 को सुकमा जिले के केरलापाल स्थित मांझी पारा में जल संरक्षण कार्यों के नक्शे का अवलोकन कर रहा था, उसी समय वहां पर गोली चलने की आवाज आई। गोली की आवाज सुनकर मैं अपने आप को बचाने के लिए जमीन के नीचे लेट गया था। इसके बाद शिविर में अफरा-तफरी मच गई। सभी इधर-उधर भागने लगे। मैने देखा कि मेरे एक गनमैन किशुन कुजूर जमीन के नीचे पड़ा हुआ था। उसी समय किसी व्यक्ति ने कहा कि साहब आप भाग जाईये। तब मैं भाग कर अपने वाहन से आगे जा रहा था। तभी रास्ते में 3-4 बंदूकधारी नकाबपोश लोगों ने मेरी गाड़ी को रोक लिया। रोककर हम सभी को गाड़ी से उतारकर पूछे कि कलेक्टर कौन है, फिर मैं सामने आया, फिर वे लोग मेरे हाथ को रस्सी से और आंख में पट्टी बांध दिया और खींचते हुए मुझे जंगल की ओर कहीं ले जाकर 10 मिनट बाद मेरे आंख की पट्टी निकाल दिये। फिर वे अपने साथ जंगल में 13 दिन रहे। इससे पहले मेनन की रिहाई के बदले माओवादियों ने सरकार के समक्ष ऑपरेशन ग्रीनहंट को बंद करने और उनके आठ सहयोगियों को रिहा करने की मांग रखी थी। बाद में सरकार की ओर से और नक्सलियों की ओर से दो-दो मध्यस्थों को रखा गया था। मध्यस्थों के बीच हुई लंबी चर्चाओं के बाद एक समझौता हुआ था और माओवादियों ने कलेक्टर की रिहाई के लिए हामी भरी थी। नक्सलियों ने कहा था कि वे 3 मई को ताड़मेटला में जिलाधिकारी को रिहा कर देंगे। 13 दिनों तक नक्सलियों के कब्जे में रखने के बाद उन्हें 3 मई को रिहा किया था।