बलरामपुर-रामानुजगंज, 24 अप्रैल 2025
राजपुर क्षेत्र के चर्चित व्यवसायी विनोद अग्रवाल उर्फ मग्गू सेठ एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। इस बार उन पर पहाड़ी कोरवा समुदाय की सामुदायिक भूमि को धोखाधड़ी से हड़पने का आरोप लगा है। मामला तब और संवेदनशील हो गया जब इस विवाद से आहत होकर समुदाय के बुजुर्ग भईरा पहाड़ी कोरवा, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा “दत्तक पुत्र” का दर्जा प्राप्त था, ने 22 अप्रैल को आत्महत्या कर ली।
भूमि धोखाधड़ी का आरोप और आत्महत्या
20 जनवरी 2025 को पहाड़ी कोरवा समुदाय के सदस्यों – भिन्सारी, भाला, जीतु और संत राम – ने जिला दंडाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को शिकायत देकर आरोप लगाया कि मग्गू सेठ ने महेंद्र कुमार गुप्ता, उदय शर्मा और पटवारी राहुल सिंह की मदद से फर्जी तरीके से उनकी जमीन की रजिस्ट्री करवा ली। आरोप है कि 14 लाख रुपये का चेक (संख्या: 768085, दिनांक 18.11.24) इस लेन-देन में उपयोग किया गया और पीड़ितों के फर्जी उंगलियों के निशान लेकर उन्हें धमकाया गया।

जनता का आक्रोश और प्रदर्शन की तैयारी
भईरा पहाड़ी कोरवा की आत्महत्या के बाद पहाड़ी कोरवा समुदाय में जबरदस्त आक्रोश है। समुदाय के लोगों ने कहा है कि वे इस अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण लेकिन निर्णायक प्रदर्शन करेंगे। यह मामला केवल एक व्यक्ति या समुदाय का नहीं, बल्कि कमजोर वर्गों के अधिकारों और सम्मान का है।
मग्गू सेठ का आपराधिक इतिहास
विनोद अग्रवाल उर्फ मग्गू सेठ का नाम कोई नया नहीं है। 2009 से 2024 तक उनके खिलाफ बलरामपुर जिले के विभिन्न थानों में गंभीर अपराध दर्ज हैं, जिनमें:
थाना राजपुर:
- 2009 से 2017 तक कुल 6 प्रकरण, जिनमें मारपीट, बलवा, अपहरण, अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न जैसे आरोप शामिल हैं।
चौकी बरियों:
- 2016 से 2021 तक 4 प्रकरण, जिनमें एक मामला धारा 304 (।।) यानी लापरवाही से मृत्यु से जुड़ा है, जिसे क्रेशर हत्याकांड से जोड़ा जा रहा है।
क्रेशर हत्याकांड और प्रशासन पर सवाल
मार्च 2022 में हुए चर्चित क्रेशर हत्याकांड में भी मग्गू सेठ का नाम सामने आया था। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने स्थानीय प्रशासन की मदद से जांच को गुमराह करने की कोशिश की। उस समय भी मृतक के परिजनों और ग्रामीणों ने सख्त कार्रवाई की मांग की थी।
क्या मिलेगा कभी न्याय?
मग्गू सेठ पर लगे आरोपों की संख्या और गंभीरता को देखते हुए यह सवाल एक बार फिर उठता है – क्या प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कभी निष्पक्ष कार्रवाई होगी? पहाड़ी कोरवा जैसे संवेदनशील समुदायों के अधिकारों की रक्षा कब सुनिश्चित होगी? अब देखना यह है कि प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले को कितनी गंभीरता से लेती है। क्या दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी या यह मामला भी पूर्व के प्रकरणों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
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